बनगांव के कुम्हारनपुरवा के सुंदर कहते हैं कि हमेशा से पूर्वजों की विरासत थी और परिवार भी इसी से चलता था, लेकिन अब आखिरी है। बच्चे दूसरे कामों में चले गए, कमाई है नहीं।
कुम्हार पुत्तीलाल ने बताया कि इस कार्य से अच्छा है कि फावड़ा चला कर मजदूरी कर लें, 300 से चार सौ तक मिल जाता है। यहां तो हफ्तेभर में भी 300 नहीं मिलते हैं।
कहा कि बड़ी इमारतों में रहने वाले कहां यहां यह दीयाली लेने आएंगे। कुम्हार पूरन कुमार, राजेंद्र प्रसाद, सावल प्रसाद, देवी प्रसाद, रामकुमार, रामावती, रमेश आदि लोगों ने बाताया कि पहले मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने के लिए मिट्टी आसानी से मिल जाया करती थी।अब तो 300 रुपए फुट देने पर भी मिट्टी नहीं मिलती। उपर से प्लास्टिक व चाइनीज सामानों ने हमें बर्बाद कर दिया। पहले 12 के 12 महीने फुरसत नहीं मिलती थी। ऊपर से दीवाली में तो दिन रात मेहनत करते थे।
रिपोर्ट-अशोक सागर
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